एक फेलियर बार बार फ़ैल होने के बाद भी डिप्टी कलेक्टर तक बनने का सफर-
एक बच्चा जो पढाई में बहुत कमजोर हो | जो बार बार छोटी से छोटी परीक्षा में बार बार फ़ैल हो जाये | और दुनिया उस पर एक फेलियर का टेग लगा दे | पढाई में कमजोर होने के बाद भी , दुनिया की नजरो में फेलियर का टेग लिये हुए इन्सान ने कैसे अपनी कमजोरी के साथ एक डिप्टी कलेक्टर तक बनने का सफर तय किया |
हर उस व्यक्ति के लिये यह काहनी प्रेणना देने वाली है | जो बार बार असफल होने पर टूट जाते है | और टूट कर वापिस खड़ा हो जाना ही जिंदगी है | आप सभी का एक बार फिर everythingpro.in के success story in hindi में स्वागत है |
आज एक फेलियर जो अपनी जिंदगी में बार बार फ़ैल होने के बाद भी डिप्टी कलेक्टर का सफर तय किया | चलिए शुरू करते है-
एक ऐसे लड़के की कहानी जो स्कूल से लेकर कॉलेज में हर जगह फ़ैल हुआ और कई बार हुआ | उसके बाद भी अपने कलेक्टर बनने का सपना नहीं छोड़ा | हम बात कर रहे है एक कायस्थ परिवार के राहुल सिन्हा के बारे में जो अपनी जिंदगी के लघभग हर मुख्य सफर पर फ़ैल हुए | उसके बाद भी उन्होंने अपनी मंजिल प्राप्त की |
एक शब्द जो मुकाम पर ले गया-
राहुल सिन्हा की कहानी शुरू होती है उनके बचपन से, बात ऐसी है कि राहुल बचपन से ही कुछ आलसी थे जो अक्सर वो अपना काम किसी और से करवाते थे | तब उनके घर वाले उनसे बोलते थे कि बड़ा लाटसाहब बन रहा है |
राहुल के दिमाग में यह बात बैठ गयी की यह लाटसाहब का मतलब क्या होता है ? राहुल जैसे जैसे बड़े हुए तो उन्हें पता लगा कि लाटसाहब कलेक्टर को बोला जाता है यह एक बहुत बड़ी post होती है | जिस पद तक पहुचने के लिए बहुत मेहनत की जाती है | उस वक़्त ही राहुल के दिमाग में यह बात आ गयी | राहुल का सपना हो गया कि उन्हें बस कलेक्टर बनना है |
असलियत में पढाई में बहुत कमजोर छात्र-
राहुल सिन्हा असलियत जिंदगी में बहुत ही कमजोर विधार्थी थे | राहुल बताते है कि वो इतने कमजोर छात्र थे कि उनकी क्लास में 30 छात्र में से वो पढाई में 30 वे ही नंबर पर थे | राहुल के पिता जी बैंक में थे तो जब उनका ट्रान्सफर किसी अन्य शहर में हुआ |
तो राहुल को एक अन्य स्कूल में दाखिला के लिए | राहुल को उस छोटे से स्कूल का एक टेस्ट पास करना होना था | और राहुल उस छोटे से टेस्ट को भी पास नहीं कर सके | यह हालत थी राहुल की पढाई की |
जिन्दगी के इमतांह-
राहुल सिन्हा जैसे तैसे 10 वी में आये | तो उनके 10वी का जिस दिन रिजल्ट आया | उस दिन उनके घर का माहोल न खुसी का था और न ही गम का | क्योकि राहुल के 10वी में 52% आये | और जब उनके पिता जी किसी को लडखडाते हुए अपने बच्चे का रिजल्ट बताते | तो वो मायूसी राहुल ने महसूस कर ली थी | कुछ ऐसे ही कम प्रतिशत अंको के साथ 12वी हुई |
मन था इंजीनियरिंग करने का –
12वी के बाद राहुल के दोस्त सभी इंजीनियरिंग करने जा रहे थे | राहुल का भी मन हुआ कि वो एक इंजिनियर बने | और इंजीनियरिंग में दाखिला के लिए वो तैयारी करने कोटा चले गये | और एक साल कोटा में इंजीनियरिंग में दाखिला के लिए पढाई की |
असफलता की शुरुआत-
राहुल ने एक साल कोटा में पढाई करने के बाद इंजीनियरिंग में AIEEE में एग्जाम देना शुरू कर दिया | और पहली बार में उन्हें असफलता हाथ लगी | राहुल ने अपने पिता जी से बोला कि में एक बार और देना चाहता हूँ | राहुल ने फिर अगली साल एग्जाम दिया | और राहुल का इस बार फिर नहीं हुआ |
दुनिया ने राहुल पर प्रश्न करना शुरू कर दिये थे कि दो साल कोटा में रहने के बाद भी एक एग्जाम पास नहीं कर पा रहा है | राहुल ने बड़ी हिम्मत से एक बार फिर अपने पापा से इजाजत मांगी कि एक बार मुझे और कोशिश करने दे इस बार 100% हो जायेगा |
राहुल ने फिर एग्जाम दिया और इस बार भी उनका नहीं हुआ | और आखरी में उन्हें एक प्राइवेट कॉलेज से ही अपनी इंजीनियरिंग करनी पड़ी | इंजीनियरिंग धीरे धीरे शुरू हो गयी | और फाइनल ईयर में राहुल अधिकतर कम्पनी में इसलिए नहीं बैठ सके क्योकि उनके 10वी और 12वी में बहुत कम अंक थे | और जिस प्लेसमेंट कम्पनी में राहुल बैठे उसमे भी उन्हें सफलता का स्वाद नहीं मिला |
उसके बाद राहुल पर कोई option नहीं था उन्होंने सोंचा कि वो CATE (Computer Aided Test Engineering) की तैयारी करते है | और आखिर में 2 बार प्रयास करने के बाद भी उन्हें फिर असफलता हाथ लगी |
कुछ बढ़ते कदम-
राहुल का CATE में भी सफलता नहीं मिलने पर | उन्होंने फिर छोटी जॉब करना शुरू कर दिया | और साथ में ही पढाई | प्राइवेट कम्पनी में जॉब करने के बाद, शादी हो जाने के बाद राहुल कि जिंदगी धीरे धीरे चलने लगी | पर इन सब के बीच उन्हें ध्यान आया कि उन्होंने जो बचपन में अपने दिमाग में बीज बोया था |
वो अब धीरे धीरे बड़ा होने लगा था | उसके बाद यूपीएससी एग्जाम देने का विचार किया | राहुल ने हर साल यूपीएससी का एग्जाम का फॉर्म भरा पर डर के मारे वो एग्जाम देने नहीं गये | जब यूपीएससी का लास्ट चांस बचा था तब उन्होंने सोंचा कि इस बार में जरुर जाऊंगा | और कड़ी मेहनत की और एग्जाम दिया |
एग्जाम का रिजल्ट आने पर उन्हें फिर से वोही असफलता हाथ लगी | जो उनके बचपन से उन्हें लग रही थी | राहुल ने सोंचा की इस जन्म में शयद वो अपने कलेक्टर बनने का सपना पूरा नहीं कर पयेंगे | इसी बीच DPSC State Public Service Commission के फॉर्म आये जिससे उन्हें पता लगा कि इस एग्जाम को पास करने के बाद भी डिप्टी -कलेक्टर बना जा सकता है |
इस एग्जाम के लिए भी राहुल पर आखिरी मोका था इसके बाद वो किसी भी गवर्नमेंट जॉब के लिये प्रयास नहीं कर सकते थे | राहुल ने अपने आप से बोल दिया कि इसी जन्म में दुनिया के बीच फेलियर का टेग है वो खत्म करना है | राहुल ने दिन रात एक कर दी और आखरी प्रयास किया |
आखरी प्रयास में जिंदगी के हर मोड़ पर असफलता से परिचय होते होते उन्हें आखिरी में सफलता ही मिली | राहुल ने एग्जाम पास किया और महज 92 रेंक ला कर अपने फेलियर का टेग हटा दिया | और आज वो डिप्टी कलेक्टर के पद पर कार्यरत है | राहुल सिन्हा की कहानी नये युवा के लिए एक प्रेणना है |
हमने इस article से क्या सीखा-
हमने आप सभी को इस article के माध्यम से बताने का प्रयास किया है कि जिंदगी में असंभव कुछ भी नहीं है | हर असफलता के बाद एक प्रयास जरुर करे | क्या पता वो प्रयास आपका आखिरी प्रयास हो |
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बहुत प्ररेणा दायक कहानी है