रिक्शा चालक का बेटा बना IAS अफ़सर –
यदि इन्सान के अंदर कड़ी मेहनत करने की लगन हो व तैयार हो तो वो इन्सान हर मंजिल को हासिल कर सकता है | आज में यह article के माध्यम से आप सभी को बताने की कोसिस कर रहा हूँ | कि एक इन्सान ने गरीबी व अनेक मुश्किलें सहन कर के आईएएस अफ़सर बनने का सफर तह किया | गोविन्द (Govind jaiswal)
रिक्शा चालक पिता की कड़ी मेहनत-
यह आज मोटिवेट स्टोरी है एक रिक्शा चालक के बेटे गोविन्द जयसवाल की | गोविन्द (Govind jaiswal) का जन्म 8 अगस्त 1983 में वनारस में ही हुआ | गोविन्द के पिता जी जो की गरीबी के कारण वस पढ़ न सके पर अपने बेटे को जरुर पढाया | गोविन्द के पिता जी एक रिक्शा चालक थे |
जो चाहे बारिस हो या सर्दी या गर्मी पर वो अपने परिवार के लिए रिक्शा चलाते ताकि शाम की रोटिया खा सके | व अपने परिवार का हरण पोषण कर सके | गोविन्द का परिवार, जो की वनारस की छोटी सी गलियों में एक छोटे से कमरे 12/8 के कमरे में रहने वाला गोविन्द का परिवार बड़ी मुश्किलों से अपना गुजारा कर पाता था |
गोविन्द अपने परिवार में सबसे छोटे थे | उनकी तीन बड़ी बहने व माँ और पिता जी रहते थे | इस छोटे से कमरे में ही गोविन्द व उनका परिवार का सामान व खाना पीना सभी चीजे इस 12/8 के छोटे से कमरे में ही होता | गोविन्द जिस जगह रहते थे वो जगह बहुत सोल-गुल वाली थी जहा अनेक प्रकार की आवाजे आया करती थी |
जिस कारण से उन्हें पढाई में बहुत दिक्कत आया करती | जिसको वो खिडकियों पर पर्दे लगा कर और अपने कानो में रुई लगाने के बाद अपनी पढाई को पूरा करते |
गोविन्द ने गरीबी को बहुत करीब से देखा है जिसको उन्होंने इस गरीबी को अपनी पढाई पर कभी भी हाबी नहीं होने दिया | गोविन्द क्लास 8 से ही बच्चो को पढ़ाते थे | और पिता रिक्शा चला कर अपने परिवार का हरण पोषण करते | इस मोहल में रहने के बाद गोविन्द को दुनिया के ताने भी सुनने को मिलते |
लोग गोविन्द से कहते की तुम कितना भी पढ़ लो | चलाना आखिर रिक्शा ही है | पर गोविन्द ने थान लिया था की वो एक दिन जरुर इस दुनिया का मुह अपनी मेहनत व लगन से बंद कर देंगे | और आखिर में किया भी |
कड़ी मेहनत-
जब अधिक शोर होता तो गोविन्द के अनुसार वो अपने कानो में रुई लगा के पढ़ते व अधिक शोर में वो मैथ लगाते व कम शोर में वो अन्य विषय पर ध्यान देते | रात में कई कई घंटो तक बत्ती का आना उनकी पढाई में रूकावट पैदा करता | जिससे बचने के लिए गोविन्द अक्सर मोमबत्तिया , डीबे में बत्ती डाल कर जला कर वो अपनी रात गुजारा करते |
12वी के बाद इंजीनियरिंग को बनाने की सोंची, अपनी सफलता का पथ-
गोविन्द शुरू से ही पढाई में नपुर थे व विज्ञान व मैथ्स उनके पसिंदा विषय थे | इस वजह से उनके चाहने वाले लोगो ने उन्हें इंजीनियरिंग करने की सलाह दी | परन्तु गरीबी के कारण वो इंजीनियरिंग न कर सके | और वनारस यूनिवर्सिटी से बीएससी की पढाई पूरी की | जहा पर उन्हें 10 रुपय की मासिक फीस देने पड़ती |
वो दिल्ली की महंगाई-
गोविन्द अपने आईएएस अफ़सर बनने के सपने के लिए काफी लगन से पढाई कर रहे थे व उसके बाद वो अपनी पढाई के लिए दिल्ली चले गये | जहा उन्होंने बहुत कड़ी मेहनत की | पर दिल्ली की महंगाई उन्हें बहुत पीड़ा दे रही थी |
पिता रिक्शा चला कर गोविन्द को पढाई के लिये पैसे देते | पर कहते हेना यह जिंदगी कदम कदम पर इम्तांह लेती है | गोविन्द के पिता जे के पैर में इन्फेक्शन हो गया जिस कारण वश वो रिक्शा न चला सके | जिसके लिए उन्हें अपनी थोड़ी सी जगह भी बेचने पड़ी व गोविन्द को पढाई में कोई समस्या न आये |
गोविन्द को यह बात बताई भी नहीं गयी | उनके पिता जी का कहना था की वो नहीं चाहते थे कि उनके कारण गोविन्द के आईएएस अफ़सर बनने के सफर में रुकावट हो |
पिता की मेहनत व गोविन्द की लगन लाई रंग-
गोविन्द के पिता ने बड़ी मुश्किलो से दिन रात रिक्शा चला कर गोविन्द को पढाया और गोविन्द ने भी अपनी मेहनत व विश्वास से किसी को निराश नहीं किया | और 2006 में मात्र 24 वर्ष में अपने पहले ही प्रियास में सिविल सर्विसेज परीक्षा में 474 सफल लोग में 48 वा स्थान ला कर | गोविन्द ने अपनी व अपने परिवार की जिन्दगी हमेशा हमेशा के लिए बदल दी |
हमने इस article से क्या सिखा-
हम ने इस article के माध्यम से आप सभी को बताने का प्रियास किया है कि परिस्थतियाँ कैसी भी हो हमे अपने लक्ष्य से ध्यान नहीं हटाना चाहिए | गोविन्द की मेहनत ने उन्हें एक नये मुकाम पर खड़ा कर दिया |
गोविन्द देश के अन्य युवाओ के लिए एक आइडियल है जो अपने लक्ष्य के प्रति जी तोर मेहनत कर रहे है | जो युवा इस article को पढ़ रहा है उनसे में कहना चाहुंगा कि मेहनत इतनी खामोशी से करो, की कामयावी शोर मचा दे…
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