प्रतुल मुखोपाध्याय (Pratul Mukhopadhyay) बंगाली संगीत जगत के प्रतिष्ठित गायक, गीतकार और संगीतकार थे।
उन्होंने अपने गीतों से समाज और राजनीति को प्रतिबिंबित किया, जिससे वह बंगाल के जनसंगीत आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक बन गए।
उनका सबसे प्रसिद्ध गीत “আমি বাংলায় গান গাই” (Ami Banglay Gaan Gai) बंगाली संस्कृति और पहचान का प्रतीक बन गया।
अंतिम दिन और विरासत
जनवरी 2025 में प्रतुल मुखोपाध्याय को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के चलते कोलकाता के SSKM अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अस्पताल जाकर उनका हालचाल लिया था। अंततः 15 फरवरी 2025 को 82 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।
उनकी मृत्यु के बाद बंगाल और भारत के सांस्कृतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई। राज्य सरकार और संगीत प्रेमियों ने उन्हें “जनता का गायक” कहा।
उनके गीत और उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।
जीवन और करियर
- जन्म: 25 जून 1942, बारीशाल (तत्कालीन ब्रिटिश भारत, अब बांग्लादेश)
- निधन: 15 फरवरी 2025, कोलकाता, भारत
- प्रारंभिक जीवन: विभाजन के बाद उनका परिवार भारत चला आया। उन्होंने छोटी उम्र से ही कविता और गीत लिखने की शुरुआत की।
- संगीत यात्रा:
- 1970 और 1980 के दशक में उन्होंने बंगाली जनसंगीत को एक नई पहचान दी।
- उनके गीतों में सामाजिक न्याय, राजनीतिक चेतना और आम आदमी के संघर्ष को दर्शाया गया।
- उन्होंने कई एल्बम और जनगीत प्रस्तुत किए, जिनमें “Dinga Bhashao Sagore” भी काफी लोकप्रिय हुआ।
प्रसिद्ध गीत और संगीत योगदान
प्रतुल मुखोपाध्याय ने कई यादगार गीतों की रचना की, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
✅ “আমি বাংলায় গান গাই” (Ami Banglay Gaan Gai) – बंगाली भाषा और संस्कृति के गौरव को समर्पित गीत।
✅ “ডিঙা ভাসাও সাগরে” (Dinga Bhashao Sagore) – आम जनता के संघर्ष की गाथा।
✅ “বেকার জীবনের পাঁচালী” (Bekar Jiboner Panchali) – बेरोजगारी और जीवन संघर्ष पर आधारित गीत।
✅ “Swapanpuriwala” और “Pathore Pathore Naache Aagun” जैसे प्रसिद्ध एल्बम।
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प्रतुल मुखोपाध्याय की विरासत
प्रतुल मुखोपाध्याय सिर्फ एक गायक नहीं, बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उनके गीतों में आम आदमी की भावनाएँ और उनकी समस्याएँ झलकती थीं।
उनकी आवाज़ संघर्षशील जनता की आवाज़ बनी और वह अपने गीतों के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का प्रयास करते रहे।
2025 में उनके निधन के बाद, बंगाल और भारत के सांस्कृतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके योगदान को अमूल्य बताया।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
प्रतुल मुखोपाध्याय सिर्फ एक गायक नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक योद्धा भी थे। उनके गीतों में वामपंथी आंदोलन, किसान संघर्ष और समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज़ गूंजती थी। उनके संगीत को बंगाली जनसंगीत आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जो “गण संगीत” (Mass Music) की परंपरा को आगे बढ़ाता था।
उनका संगीत सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बांग्लादेश और अन्य बंगाली भाषी समुदायों में भी लोकप्रिय हुआ।
प्रतुल मुखोपाध्याय का संगीत और उनकी विचारधारा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी।
उनकी रचनाएँ न केवल मनोरंजन का माध्यम थीं, बल्कि उन्होंने समाज को जागरूक करने और एकता का संदेश देने का भी काम किया।
“আমি বাংলায় গান গাই“ सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि बंगाली अस्मिता और गौरव का प्रतीक बन चुका है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी याद रखा जाएगा।
संगीत और योगदान
प्रतुल मुखोपाध्याय ने कई ऐसे गीत गाए जो बंगाल में जनांदोलनों और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन गए। उनके प्रमुख गीतों में शामिल हैं:
✅ “আমি বাংলায় গান গাই” (Ami Banglay Gaan Gai) – यह गीत बंगाली अस्मिता और भाषा प्रेम का प्रतीक है।
✅ “ডিঙা ভাসাও সাগরে” (Dinga Bhashao Sagore) – यह गीत संघर्ष और सामूहिक चेतना को दर्शाता है।
✅ “বেকার জীবনের পাঁচালী” (Bekar Jiboner Panchali) – बेरोजगारी और युवाओं की समस्याओं पर आधारित गीत।
उनके प्रमुख एल्बम में शामिल हैं:
🎵 Pathore Pathore Naache Aagun (1988)
🎵 Jete Hobey (1994)
🎵 Kuttus Kottas (1997)
🎵 Swapner Pheriwala (2000)
🎵 Aandhar Naame (2007)
उन्होंने बंगाली सिनेमा के लिए भी गाने गाए, जिनमें “Gosaibaganer Bhoot” प्रमुख है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
प्रतुल मुखोपाध्याय सिर्फ एक गायक नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक योद्धा भी थे। उनके गीतों में वामपंथी आंदोलन, किसान संघर्ष और समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज़ गूंजती थी।
उनके संगीत को बंगाली जनसंगीत आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जो “गण संगीत” (Mass Music) की परंपरा को आगे बढ़ाता था।
उनका संगीत सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बांग्लादेश और अन्य बंगाली भाषी समुदायों में भी लोकप्रिय हुआ।