आर्कटिक महासागर में वैज्ञानिकों की ऐतिहासिक खोज : बोरेलिस मड ज्वालामुखी

गहरे समुद्र में वैज्ञानिकों ने आर्कटिक महासागर के तल पर एक अद्वितीय खोज की है —बोरेलिस मड ज्वालामुखी। यह ज्वालामुखी बारेंट्स सागर में 400 मीटर की गहराई पर स्थित है और यह नॉर्वे के जल क्षेत्र में खोजे गए दूसरे मड ज्वालामुखी में से एक है।

बोरेलिस मड ज्वालामुखी की खोज

यह असामान्य ज्वालामुखी UiT – द आर्कटिक यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्वे और REV Ocean के वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया था। इस खोज में ROV Aurora नामक एक रिमोट-ऑपरेटेड अंडरवाटर व्हीकल का उपयोग किया गया, जिसने समुद्र की गहराई में जाकर ज्वालामुखी का निरीक्षण किया। यह ज्वालामुखी लगभग 7 मीटर व्यास और 2.5 मीटर ऊँचा है तथा यह लगभग 18,000 साल पहले एक प्राकृतिक विस्फोट के कारण बना था |

समुद्री जीवन के लिए एक सुरक्षित आश्रय

हालांकि कोई सोच सकता है कि ज्वालामुखी का वातावरण जीवों के लिए प्रतिकूल होगा, लेकिन यह ज्वालामुखी समुद्री जीवों के लिए एक अनूठा आश्रय स्थल बन गया है। इसकी सतह पर कार्बोनेट परतें बनी हुई हैं, जो समुद्री जीवों के लिए रहने, छिपने और भोजन प्राप्त करने का स्थान प्रदान करती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, इस ज्वालामुखी का तापमान समुद्र तल के सामान्य 4°C तापमान की तुलना में 11.5°C तक बढ़ सकता है, जिससे एक विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र विकसित हुआ है |

खोज का वैज्ञानिक महत्व

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Borealis mud volcano barents sea

यह खोज न केवल समुद्री जीवन की विविधता को समझने में मदद करती है, बल्कि ग्लोबल मीथेन चक्र और महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र पर इसके प्रभावों को भी उजागर करती है। वैज्ञानिकों ने पाया कि यह ज्वालामुखी लगातार मीथेन गैस छोड़ता है, जो जलवायु परिवर्तन के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है |

यह खोज आर्कटिक महासागर में अज्ञात भूवैज्ञानिक गतिविधियों और वहां रहने वाले असामान्य जीवों को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस क्षेत्र में और भी ऐसे ज्वालामुखी हो सकते हैं, जिन्हें अभी तक खोजा नहीं गया है |

बोरेलिस मड ज्वालामुखी की ऐतिहासिक खोज

यह ज्वालामुखी 400 मीटर की गहराई पर स्थित है और लगभग 7 मीटर व्यास तथा 2.5 मीटर ऊँचा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ज्वालामुखी लगभग 18,000 साल पहले एक प्राकृतिक विस्फोट के कारण बना था

कैसे हुई यह खोज?

वैज्ञानिकों ने ROV Aurora नामक एक रिमोट-ऑपरेटेड वाहन का उपयोग करके इस ज्वालामुखी का गहराई से निरीक्षण किया। यह तकनीक समुद्र की गहराई में जाकर वहां के वातावरण को समझने में मदद करती है।

UiT – द आर्कटिक यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्वे और REV Ocean के शोधकर्ताओं ने पाया कि यह ज्वालामुखी लगातार मीथेन गैस और अन्य खनिज उत्सर्जित करता है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है

आम तौर पर ज्वालामुखी को जीवन के लिए प्रतिकूल वातावरण माना जाता है, लेकिन बोरेलिस मड ज्वालामुखी एक अपवाद साबित हुआ

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विशेषताएँ जो इसे अनोखा बनाती हैं:

  • गर्म पानी का स्रोत: ज्वालामुखी अपने आसपास के क्षेत्र को 11.5°C तक गर्म कर सकता है, जबकि समुद्र तल का सामान्य तापमान 4°C होता है।
  • समुद्री जीवों का निवास स्थान: इसकी सतह पर बनी कार्बोनेट परतें विभिन्न समुद्री जीवों को रहने, छिपने और भोजन प्राप्त करने का स्थान प्रदान करती हैं

वैज्ञानिक और पर्यावरणीय महत्व

मीथेन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव

यह ज्वालामुखी लगातार मीथेन गैस उत्सर्जित करता है, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस खोज से हमें ग्लोबल मीथेन बजट और जलवायु परिवर्तन पर इसके प्रभावों को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी |

संरक्षण और सतत विकास की आवश्यकता

नॉर्वे सरकार 30×30 लक्ष्य (2030 तक 30% भूमि और समुद्र की सुरक्षा) के तहत ऐसे पारिस्थितिक स्थलों को संरक्षित करने की योजना बना रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस खोज से गहरे समुद्र की पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखने की दिशा में नई संभावनाएँ खुलेंगी |

भविष्य में ये संभावनाए हो सकती है –

  1. नए ज्वालामुखियों की खोज: वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस क्षेत्र में अन्य छिपे हुए मड ज्वालामुखी भी मौजूद हो सकते हैं, जिन्हें अभी तक खोजा नहीं गया है।
  2. गहरे समुद्र में जीवन का अध्ययन: इस खोज से वैज्ञानिकों को समुद्री जीवन के अद्वितीय रूपों को समझने में मदद मिलेगी।
  3. अन्य ग्रहों पर अनुसंधान: यह खोज अन्य ग्रहों, विशेष रूप से बृहस्पति और शनि के चंद्रमाओं पर जीवन की संभावनाओं को समझने में मदद कर सकती है |

बोरेलिस मड ज्वालामुखी की खोज वैज्ञानिकों के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह न केवल समुद्री जीवन को लेकर हमारी समझ को गहरा करती है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग, मीथेन उत्सर्जन और महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों को भी उजागर करती है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, गहरे समुद्र में अभी भी कई रहस्य छिपे हुए हैं, जिन्हें उजागर करना बाकी है।

यह खोज न केवल पृथ्वी, बल्कि अन्य ग्रहों पर भी जीवन की संभावनाओं को समझने में मदद कर सकती है।

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